नन्द भवन में उड़ रही धूल
नन्द भवन में उड़ रही धूल,
धूल मोहे प्यारी लागे,
उड़ उड़ मेरे नैनन पे आवे,
करे दर्शन करे भरपूर,
धूल मोहे प्यारी लागे,
उड़ उड़ धूल मेरे होठन पे आवे,
मैंने भजन गाये भरपूर,
धूल मोहे प्यारी लागे,
नन्द भवन में उड़ रही धूल,
धूल मोहे प्यारी लागे,
उड़ उड़ धूल मेरे हाथन पे आवे,
मैंने ताली बजाई भरपूर,
धूल मोहे प्यारी लागे,
नन्द भवन में उड़ रही धूल,
धूल मोहे प्यारी लागे,
उड़ उड़ धूल मेरे पैरन पे आवे,
मैंने नृत्य किया भरपूर,
धूल मोहे प्यारी लागे,
नन्द भवन में उड़ रही धूल,
धूल मोहे प्यारी लागे,
नन्द भवन में उड़ रही धूल,
धूल मोहे प्यारी लागे,
श्रेणी : कृष्ण भजन
Nand Bhawan Me Ud Rahi Dhool | नन्द भवन में उड़ रही धूल | Devi Neha Saraswat Bhajan | Krishna Bhajan
"नन्द भवन में उड़ रही धूल" भजन में भक्ति और भावनाओं की जो अभिव्यक्ति है, वह मन को भाव-विभोर कर देती है। देवी नेहा सरस्वत की मधुर आवाज़ में गाया गया यह भजन भक्तों के हृदय में कृष्ण प्रेम की अनुपम छटा बिखेरता है।
इस भजन में नन्द भवन, जहां कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएं रचीं, उसकी पवित्रता को दर्शाया गया है। भजनकार ने कृष्ण के आंगन में उड़ती पवित्र धूल को भी दिव्य और पूजनीय माना है। भक्त के लिए यह धूल किसी आशीर्वाद से कम नहीं है। जब वह धूल आंखों को छूती है, तब उसे कृष्ण के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, और जब वह होठों को छूती है, तब वह भजन और कीर्तन में लीन हो जाता है।
हर पंक्ति में भक्ति का उत्साह और समर्पण छलकता है। हाथों पर पड़ने वाली धूल भक्त को तालियां बजाने के लिए प्रेरित करती है, और पैरों पर पड़ने वाली धूल नृत्य की भाव-भंगिमाओं को जन्म देती है। यह भजन केवल शब्दों का संकलन नहीं है, बल्कि कृष्ण भक्ति में डूबी आत्मा की पुकार है।
नन्द भवन की पावन धूल को इस भजन में प्रतीक के रूप में लिया गया है, जो भक्त को अहंकार से मुक्त कर, उसे भक्ति मार्ग पर अग्रसर करती है। इस भजन को सुनते ही कृष्ण की बाल लीलाओं का चित्र हृदय में उभर आता है, और भक्त भाव-विभोर होकर उनके नाम का गुणगान करने लगता है।
"नन्द भवन में उड़ रही धूल, धूल मोहे प्यारी लागे" — यह पंक्ति हर कृष्ण प्रेमी के मन में भक्ति और प्रेम की धारा बहा देती है, जिससे उसकी आत्मा भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में पूर्णतः तल्लीन हो जाती है।