श्यामा-श्याम नाम रूप लीला गुण धामा
श्यामा-श्याम नाम रूप लीला गुण धामा।
गाओ रोके रूपध्यान युक्त आठों यामा।।
मन ते मनन करो श्याम अरु श्यामा।
गरबाहीं दीन्हें बैठे कुंज ब्रजधामा।।
मन ते मनन करो बरसाने धामा।
गहवर वन हरि परखत श्यामा।।
मन ते मनन करो श्याम सुखधामा।
देयं बुहारी गहवर बनि श्यामा।।
मन ते मनन करो दिव्य ब्रजधामा।
जित नित नवलीला करें श्याम-श्यामा।।
मन ते मनन करो गोलोक धामा।
जित केकी कीर बोलें राधे राधे नामा॥
मन ते मनन करो वृंदावन धामा।
जित नित्य महारास करें श्याम-श्यामा।।
मन ते मनन करो दिव्य हरिधामा।
जित दिव्य गोप गोपी श्याम अरु श्यामा॥
मन ते मनन करु दोऊ श्याम श्यामा।
भुज फैला के खरे परखत धामा॥
मन ते मनन करु हरि सुखधामा।
उर लगाय कह तू मेरी बामा॥
मन ते मनन करु निज गुरु धामा।
गुरु उर बैठे देखें मोहिं श्याम-श्यामा॥
मन ते मनन करु हरि गुरु पामा।
पुनि उन पद धरूँ निज उर धामा॥
मन ते मनन करु गुरु प्रेमधामा।
सिर धरि कर देयँ प्रेम निष्कामा॥
मन ते मनन करु कब ब्रजधामा।
जाके गाऊँ राधे राधे रोऊँ आठु यामा॥
मन ते मनन करु कृपामयी श्यामा।
महल की टहल दिला दो संग बामा॥
मन ते मनन करु रूप श्याम श्यामा।
रो के कहु ले लो मोहू संग ब्रज बामा॥
मन ते मनन करु भाव देह बामा।
रोके कहे पिय देहु प्रेम निष्कामा॥
मन ते मनन करु हा श्याम श्यामा।
या तो आओ या तो बुला लो निज धामा॥
मिले बिनु रहा नहिं जाय जब बामा।
तब ही मिलेंगे श्याम अरु श्यामा॥
मिलें नहिं जब लौं तोहिं श्याम श्यामा।
मिलन की प्यास बढ़ाओ आठु श्यामा॥
श्याम को रिझाना हो दो आँसू निष्कामा।
भाजे आइहैं तजि गोलोक निज धामा॥
पुस्तक : श्यामा श्याम गीत
दोहा संख्या : 979-1006 (रूपध्यान)
पृष्ठ संख्या : 282
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्
स्वर : सुश्री अखिलेश्वरी देवी
कवि : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
श्रेणी : कृष्ण भजन
श्यामा श्याम गीत | Shyama Shyam Geet | Ft. Akhileshwari Didi
"श्यामा-श्याम नाम रूप लीला गुण धामा" एक अत्यंत मधुर और भक्तिभाव से ओतप्रोत भजन है, जिसे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित किया गया है। यह भजन हमें श्याम और श्यामा के दिव्य स्वरूप, उनकी अनंत लीलाओं और उनके परमधाम की महिमा का दर्शन कराता है। भक्तजन इस भजन का गायन कर अपनी भक्ति को और प्रगाढ़ कर सकते हैं, क्योंकि इसमें ब्रजधाम, वृंदावन, गहवर वन, और गोलोक धाम के परम आनंदमयी दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं।
इस भजन के हर पद में "मन ते मनन करो" की पुनरावृत्ति से भक्तों को ध्यानस्थ होकर भगवान श्री कृष्ण और राधारानी के स्वरूप का चिंतन करने की प्रेरणा दी गई है। जब भक्तजन गहवर वन की महिमा का मनन करते हैं, तब वे स्वयं को उस दिव्य वातावरण में अनुभव कर सकते हैं, जहाँ श्री राधा रानी और श्री कृष्ण अपनी लीलाएँ करते हैं। इस भजन में वृंदावन और ब्रजधाम के दिव्य सौंदर्य का भी उल्लेख है, जहाँ नित्य महारास होता है और गोप-गोपियाँ प्रेममय होकर श्री श्याम और श्यामा की भक्ति में मग्न रहते हैं।
भजन का प्रत्येक शब्द भक्ति और प्रेम से सराबोर है, जिससे हृदय में श्री राधा-कृष्ण के दर्शन की तीव्र लालसा उत्पन्न होती है। इस भजन के माध्यम से यह संदेश भी दिया गया है कि यदि हम सच्चे हृदय से श्री श्याम-श्यामा का ध्यान करें, तो वे हमें अपने प्रेम से भर देंगे और हमारे मन को भक्ति रस में डुबो देंगे। "रोके कहु ले लो मोहू संग ब्रज बामा" जैसे शब्दों में भक्त की भाव-विह्वलता स्पष्ट झलकती है, जो भगवान से प्रार्थना करता है कि उसे ब्रजधाम में अपनी सेवा का सौभाग्य प्रदान करें।
इस भजन को सुश्री अखिलेश्वरी देवी जी के मधुर स्वर में गाया गया है, जो इसकी दिव्यता को और भी अधिक बढ़ा देता है। जब भक्त इसे सुनते हैं, तो उनकी आत्मा प्रेम और भक्ति से भर उठती है और वे श्याम-श्यामा के चरणों में स्वयं को समर्पित करने के लिए प्रेरित होते हैं। यह भजन मात्र एक गीत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है, जो भक्तों को श्री कृष्ण और राधा रानी की ओर ले जाने का एक अमोघ साधन बन जाता है।