मेरे पैरां बिच घुंघरू पादे, mere pairan bich ghunrunpaade

मेरे पैरां बिच घुंघरू पादे



दिल विच्च तार इश्क़ दी वज्दी ए,
ते नाले वज्दी खंजरी ए,
मैं ते नच्च के श्याम मना लैना,
भेड़े लोक केहन भावे कंजरी ए...
नचना वी इबादत बन जांदा,
नचने दा जे कोई चज होवे,
ओ वाट मक्के दी क्यों पावे,
जिदा श्याम नू वेखेया हज होव...

मेरे पैरां बिच घुंघरू पादे
मैं वृंदावन आवां नचदी,
मैं वृंदावन आवां नचदी,
मैं वृंदावन आवां नचदी,
फड़ उंगली ते नचना सिखा दे,
मैं वृंदावन आवां नचदी....

रोम रोम मेरा रंग बिच रंगया,
तेरे दीदार बाजों कुछ भी ना मंगया,
ओ मेनू मस्ती दा जाम पीला दे,
मैं वृंदावन आवां नचदी....

आवां छाल मार ऐथे भगतां दे नाल जी,
नच नच कर देवां दर ते कमाल जी,
दिलों दूरी वाला पर्दा हटा दे,
मैं वृंदावन आवां नचदी....

दर तेरे आके सारे पांदे ने बोलियां,
हर शहरों आंदियां ने वृंदावन टोलियां,
ओ भाग साढे भी आज्ज तू जगा दे,
मैं वृंदावन आवां नचदी....

ओ रूप तेरे दी मैं होई दीवानी,
नच नच के मैं होई मस्तानी,
ओ मेनू चरणा च अपने लगा ले,
मैं वृंदावन आवां नचदी...



श्रेणी : कृष्ण भजन



कृष्ण जन्मोत्सव | मेरे पैरां विच घुंघरू पवा दे मैं वृन्दावन आवा नचदी | Janmashtami Special Bhajan

"मैं वृंदावन आवां नचदी" एक अत्यंत मधुर और भावपूर्ण कृष्ण भजन है, जो भक्तिभाव से ओतप्रोत होकर श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। इस भजन में भक्त की अनोखी भक्ति देखने को मिलती है, जहाँ वह श्याम सुंदर के दर्शनों की लालसा में नृत्य करते हुए वृंदावन जाने की इच्छा प्रकट करता है। भजन की पंक्तियाँ दिल को छू लेने वाली हैं, जो श्याम प्रेम में लीन होकर भक्ति को एक नए रंग में प्रस्तुत करती हैं।

भजन के बोल पंजाबी में रचे गए हैं, जिससे इसमें एक विशेष प्रकार की मिठास और लयबद्धता आ जाती है। यह भजन बताता है कि नृत्य भी एक इबादत हो सकता है, अगर वह कृष्ण की भक्ति में लीन होकर किया जाए। भजन में भक्त श्रीकृष्ण से विनती करता है कि वे उसे अपने चरणों में स्थान दें और अपनी भक्ति का रंग उसमें भर दें। वृंदावन की महिमा का वर्णन करते हुए यह भजन यह भी दर्शाता है कि जो भी भक्त वहां जाकर श्याम के चरणों में नृत्य करता है, उसे स्वयं कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यह भजन न केवल शब्दों से बल्कि अपनी भावनाओं से भी श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण की गवाही देता है। जब इस भजन को गाया जाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वयं गोपियां कृष्ण प्रेम में मग्न होकर वृंदावन की गलियों में नृत्य कर रही हों। यह भजन हर कृष्ण भक्त को झूमने और नाचने पर विवश कर देता है, जिससे भक्त और भगवान के बीच का भावनात्मक रिश्ता और प्रगाढ़ हो जाता है।

Harshit Jain

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