मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग
जाने दे रे कान्हा ना कर मोहे तंग,
मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग,
अरे मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग,
पिछले बरस की होली याद है सबको,
कितना सताया कान्हा तूने मुझको,
फिर से ले आया तू होली के वोही रंग,
मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग,
अरे मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग,
अब ना चलेगा तेरा कोई बहाना,
दूर ही रहना मेरे पास ना आना,
पास आके कान्हा ना छूना मेरा अंग,
मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग,
अरे मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग,
कैसे मैं जाने दूं तुझको गोरी,
कैसे मैं छोड़ू तेरी चुनर कोरी,
कोरी तेरी चुनर पे लगाऊं आज रंग,
मैं तो खेलू होली ओ राधा तेरे संग,
अरे मैं तो खेलू होली ओ राधा तेरे संग,
Lyri cs - Jay Prakash Verma, Indore
श्रेणी : कृष्ण भजन
मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग (होली भजन 2025) #priyanjaykeshyambhajan #holi2025 #holibhajan2025
"मैं ना खेलू होली ओ कान्हा तेरे संग" एक अत्यंत भावपूर्ण और मधुर कृष्ण भजन है, जिसे जय प्रकाश वर्मा, इंदौर ने लिखा है। इस भजन में राधा और कृष्ण के बीच होली के रंगों से भरी मीठी छेड़छाड़ का मनोरम चित्रण किया गया है। राधा अपने प्रिय कान्हा से रूठी हुई हैं और बीते वर्ष की होली को याद करते हुए कहती हैं कि इस बार वह कृष्ण के साथ होली नहीं खेलेंगी। कान्हा की शरारतों और उनकी नटखट अदाओं का उल्लेख करते हुए राधा उनसे दूर रहने का आग्रह करती हैं, ताकि इस बार वे फिर से परेशान न करें।
लेकिन कृष्ण भला मानने वाले कहां हैं? वे अपनी राधा को मनाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। राधा की कोरी चुनर को रंगने की बात करते हैं और प्रेम भरे शब्दों में उन्हें अपनी होली का हिस्सा बनाने का अनुरोध करते हैं। इस पूरे भजन में कृष्ण और राधा के बीच के प्रेम और शरारत का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। शब्दों में भरी मासूमियत और प्रेम की मिठास इसे एक अद्वितीय होली भजन बनाती है, जिसे सुनकर भक्तजन आनंदित हो उठते हैं।
यह भजन न केवल होली के उल्लास को दर्शाता है, बल्कि भक्तों को राधा-कृष्ण की दिव्य प्रेमलीला से भी जोड़ता है। जय प्रकाश वर्मा द्वारा रचित इस भजन में भक्ति, प्रेम, और हास-परिहास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, जो इसे एक विशेष और मधुर कृति बनाता है।