जय जय बरसाने वारी
जय जय रस बरसाने वारी, जय जय बरसाने वारी।
जय जय महाभाव रसवारी, जय जय नथ बेसर बारी।
जय जय प्रानहुँ ते प्यारी, जय जय प्यारी बलिहारी।
जय जय मोहन मोहिनि प्यारी, जय जय अति भोरी प्यारी।
पतित पावनी तुम बिनु प्यारी, कोउ नहिं है त्रिभुवन प्यारी।
भली बुरी जैसी हूँ प्यारी, हूँ तो तेरी सुकुमारी।
तोहिं तजि जाऊँ कित सुकुमारी, पता बता दे मम प्यारी।
तू तो थी बिनु हेतु सनेहिनि, अब क्यों निठुर भई प्यारी।
ब्रजरस बूँद पिला दे प्यारी, घटे न कछु तव सुकुमारी।
छोडूं नहिं पाछा हौँ प्यारी, चाहे जो हो सुकुमारी।
सुधि लो 'कृपालु' मम प्यारी, अति कृपालु तुम सुकुमारी।
पुस्तक : ब्रजरस माधुरी-1
कीर्तन संख्या : 35
पृष्ठ संख्या : 74
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्
स्वर : सुश्री अखिलेश्वरी देवी
कवि : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
श्रेणी : कृष्ण भजन
जय जय रस बरसाने वारी | ब्रज रस माधुरी~१ | Ft. Akhileshwari Didi
"जय जय रस बरसाने वारी" एक अत्यंत मधुर और भावपूर्ण कृष्ण भक्ति कीर्तन है, जिसे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने रचा है। यह भजन ब्रज की रानी, प्रेम और भक्ति की साक्षात स्वरूपा श्री राधारानी की महिमा का गुणगान करता है।
इस भजन में भक्त प्रेम की गहराई को दर्शाते हुए राधारानी की स्तुति कर रहा है, उन्हें "महाभाव रसवारी," "नथ बेसर बारी," और "प्राणहुँ ते प्यारी" कहकर संबोधित करता है। यह भक्ति भाव का चरम है, जहाँ भक्त अपनी संपूर्ण समर्पण भावना के साथ श्रीराधा से निवेदन करता है कि वह उनके ब्रजरस का एक बूँद अपने भक्तों को प्रदान करें।
यह भजन बताता है कि श्रीराधा त्रिभुवन में सर्वोच्च हैं, उनके बिना कोई भी जीव इस संसार सागर से पार नहीं हो सकता। भक्त कहता है कि वह चाहे जैसी भी हो, अच्छी या बुरी, लेकिन अंततः वह श्रीराधा की शरण में ही है और उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जा सकता।
"ब्रजरस माधुरी-1" ग्रंथ से लिया गया यह संकीर्तन भक्ति रस से सराबोर है और इसे श्रद्धेय सुश्री अखिलेश्वरी देवी के मधुर स्वर में गाया गया है। यह भजन प्रेम रस में डूबे भक्तों के लिए एक अद्भुत संजीवनी है, जो उन्हें श्रीराधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का अनुभव कराती है।