होली खेले नंदलाला बिरज में
होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
बरसाने में आया कन्हैया, बरसाने में आया कन्हैया,
रंगने को राधा की सखियां, रंगने को राधा की सखियां,
अरे डर गई बृज बाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
डर गई बृज बाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
अरे होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला
डर के भागी सखियां सारी, डर के भागी सखियां सारी,
पीछे पीछे भागे मुरारी, पीछे पीछे भागे मुरारी,
अरे छुप गई बृज बाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
छुप गई बृज बाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
अरे होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
चढ़ गए कान्हा ऊंची अटारी, चढ़ गए कान्हा ऊंची अटारी,
भर भर मारे कान्हा पिचकारी,भर भर मारे कान्हा पिचकारी,
अरे बच ना पाई कोई बाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
बच ना पाई कोई बाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
अरे होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला,
Lyr ics - Jay Prakash Verma, Indore
श्रेणी : कृष्ण भजन
होली खेले नंदलाला बिरज में । Holi Khele Nandlala Biraj Me । #holi2025 #priyanjaykeshyambhajan #holi
ब्रज की पवन भूमि पर होली का उत्सव कोई साधारण पर्व नहीं, बल्कि एक दिव्य लीला है, जहाँ स्वयं श्रीकृष्ण अपनी सखाओं और सखियों संग रंगों की वर्षा करते हैं। "होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला"—इस भजन की हर पंक्ति हमें ब्रज की उसी रंगीन छटा में डुबो देती है, जहाँ कान्हा अपने अल्हड़ अंदाज में राधा और गोपियों को प्रेम के रंग में रंगते हैं।
बरसाने में आया कन्हैया, रंगने को राधा की सखियां—जैसे ही श्रीकृष्ण अपनी टोली के साथ बरसाने में प्रवेश करते हैं, राधा जी की सखियाँ हँसी-ठिठोली के साथ उनसे रंग खेलने को तैयार होती हैं। लेकिन कान्हा की मस्ती के आगे कोई नहीं टिकता, और सखियाँ डरकर भागने लगती हैं।
डर के भागी सखियां सारी, पीछे-पीछे भागे मुरारी—इस पंक्ति में श्रीकृष्ण की चंचलता और सखियों की लज्जा का अद्भुत चित्रण मिलता है। सखियाँ कान्हा के रंगों से बचने के लिए भागती हैं, और मुरारी प्रेम भरी छेड़छाड़ के साथ उनका पीछा करते हैं।
चढ़ गए कान्हा ऊँची अटारी, भर-भर मारे कान्हा पिचकारी—इस दृश्य में कान्हा की शरारत अपने चरम पर पहुँचती है। वे ऊँची अटारी पर चढ़कर पिचकारी से रंग बरसाने लगते हैं, जिससे कोई भी बच नहीं पाता। पूरे ब्रज में गुलाल और रंगों की वर्षा होने लगती है, और भक्तजन इस दिव्य उत्सव में सराबोर हो जाते हैं।
यह भजन केवल होली के उत्सव का वर्णन भर नहीं करता, बल्कि ब्रज की होली की उस अनूठी मिठास को जीवंत कर देता है, जहाँ रंगों में प्रेम घुला होता है, और राधा-कृष्ण की अलौकिक लीलाएँ मन को भक्ति से भर देती हैं।
"होली खेले नंदलाला, बिरज में होली खेले नंदलाला", यह पंक्ति कान्हा की नटखट लीलाओं को स्मरण कराती है और हमें भी उनके दिव्य प्रेम और भक्ति के रंग में रंग जाने का संदेश देती है।
Radhe Radhe
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