भोले नीलकंठ पर बैठे पी गया
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया.....
अमृत भंगिया पी गए, हरि हरि भंगिया,
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया....
ब्रह्मा आ गए विष्णु आ गए, आ गए सांवरिया,
भोलेनाथ गोरा संग आ गए, घोटे भंगिया,
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया....
ब्रह्मा पी गए विष्णु पी गए, पी गए सांवरिया,
भोलेनाथ ने इतनी पिलाई मुंद गई अखियां,
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया....
ब्रह्मा को चढ गई विष्णु चढ़ गई, चढ़ गई सांवरिया,
भोलेनाथ को ऐसी चढ़ गई आ गई निंदिया,
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया....
ब्रह्मा नाचे विष्णु नाचे, नाचे सांवरिया,
भोलेनाथ तो ऐसे नाचे खुल गई लटिया,
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया....
ब्रह्मा की उतरी विष्णु की उतरी, उतरी सांवरिया,
भोलेनाथ की ऐसी उतरी खुल गई निंदिया,
भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया....
श्रेणी : शिव भजन
आते ही धूम मचा दी इस भजन ने🌿भोले नीलकंठ पे बैठे पी गए अमृत भंगिया #भोलेभजन
"भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया" एक अत्यंत मधुर और भक्तिमय शिव भजन है, जो भगवान भोलेनाथ के अनूठे स्वरूप और उनकी अलौकिक भंग की मस्ती को दर्शाता है। यह भजन शिव की उस भंगिमा का वर्णन करता है, जिसमें वे स्वयं अमृत और भंग का अद्भुत संगम करते हैं, जिससे सम्पूर्ण सृष्टि में एक दिव्य आनंद की लहर दौड़ जाती है।
भजन की शुरुआत भगवान शिव के नीलकंठ रूप की महिमा से होती है, जिसमें वे अमृत और भंग को सहजता से ग्रहण करते हैं। इसके बाद, ब्रह्मा, विष्णु और स्वयं सांवरिया (श्रीकृष्ण) भी इस दिव्य प्रसंग में सम्मिलित होते हैं। शिव के सान्निध्य में जब वे भंग ग्रहण करते हैं, तो उनकी अवस्था बदलने लगती है—आंखें मुंदने लगती हैं, चेतना डगमगाने लगती है, और फिर वे नृत्य में मग्न हो जाते हैं।
भजन के प्रत्येक चरण में शिव की मस्ती, उनकी अलौकिकता और उनके साथ उपस्थित देवताओं की दशा का सुंदर वर्णन किया गया है। ब्रह्मा, विष्णु और सांवरिया जब भंग के प्रभाव में झूमने लगते हैं, तो भोलेनाथ का भी नृत्य आरंभ हो जाता है, जिससे उनका जटाजूट खुलने लगता है और सृष्टि में एक अलग ही उल्लास का वातावरण बन जाता है।
यह भजन केवल शिव की भक्ति में सराबोर करने वाला नहीं है, बल्कि उनके भोलेपन, मस्तमौला स्वभाव और सहजता को भी उजागर करता है। शिव, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के पालनहार हैं, अपने निराले अंदाज में भक्तों को यह संदेश देते हैं कि वे साधारण और असाधारण दोनों में समान रूप से रमण करते हैं।
"भोले नीलकंठ पर बैठे पी गए अमृत भंगिया" भजन शिवभक्तों के लिए एक आध्यात्मिक आनंद है, जो शिव की मस्ती और उनकी अलौकिक लीलाओं का सुंदर चित्रण करता है। महाशिवरात्रि या अन्य भक्तिमय अवसरों पर यह भजन गाया जाए तो वातावरण में एक अनोखी भक्ति और उल्लास की लहर दौड़ जाती है। जय भोलेनाथ! 🚩🙏