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Image Credit: Daniel Berehulak/Getty Images |
महाकुंभ 2025 का शुभारंभ 13 जनवरी से प्रयागराज में हो चुका है, और इसका समापन 26
फरवरी को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर होगा। यह भव्य आयोजन न केवल धार्मिक आस्था
का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म का अनूठा संगम भी है। हर
12 वर्ष के अंतराल पर आयोजित होने वाले इस महाकुंभ का ज्योतिषीय महत्व भी बहुत गहरा
है। इस अवसर पर भारत के साथ-साथ विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु और पर्यटक संगम की
पवित्रता का अनुभव करने के लिए एकत्रित होते हैं।
महाकुंभ का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
कुंभ मेले का आयोजन भारत के चार प्राचीन शहरों हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और
प्रयागराज में होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र
मंथन के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरी थीं। इस कारण इन
स्थलों को अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान इन स्थलों
पर स्नान करने से व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर
सकता है।
पहले शाही स्नान का महत्व और शुभ मुहूर्त
महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है। 13 जनवरी को पूर्णिमा के अवसर पर पहला
शाही स्नान संपन्न हुआ। हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि का आरंभ 13 जनवरी को
सुबह 5:03 बजे हुआ और इसका समापन 14 जनवरी को रात 3:56 बजे होगा। इस दौरान कई विशेष
मुहूर्त जैसे ब्रह्म मुहूर्त, प्रात: संध्या मुहूर्त और गोधूलि मुहूर्त बनाए गए,
जिनमें स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया।
महाकुंभ 2025 में अद्वितीय संयोग
इस बार का महाकुंभ और भी खास है, क्योंकि 144 वर्षों के बाद सूर्य, चंद्रमा और
बृहस्पति ग्रहों की वही स्थिति बन रही है, जो समुद्र मंथन के समय बनी थी। इस दुर्लभ
संयोग को बेहद शुभ माना जा रहा है। साथ ही, रवि योग और भद्रावास योग भी इस महाकुंभ
को और पावन बना रहे हैं। इन योगों में भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती
है।
महाकुंभ के छह शाही स्नान
महाकुंभ में कुल छह शाही स्नान होंगे। पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पूर्णिमा के दिन
हुआ। दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर होगा। इसके बाद तीसरा शाही
स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन, चौथा 2 फरवरी को बसंत पंचमी पर, पांचवां
12 फरवरी को माघ पूर्णिमा पर और अंतिम शाही स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन
आयोजित होगा।
महाकुंभ की पौराणिक कथा
समुद्र मंथन की कथा महाकुंभ के महत्व को रेखांकित करती है। पौराणिक कथा के अनुसार,
ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता कमजोर हो गए थे। उनकी रक्षा के लिए भगवान
विष्णु ने देवताओं को राक्षसों के साथ समुद्र मंथन करने की सलाह दी। मंथन से निकले
अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला। इस दौरान अमृत
की कुछ बूंदें चार स्थानों—हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में गिरीं। इन्हीं
स्थानों पर हर 12 वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
महाकुंभ: एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक यात्रा
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता की
समृद्ध धरोहर का उत्सव भी है। यहां आने वाले श्रद्धालु संगम पर स्नान करने के
साथ-साथ साधु-संतों के प्रवचन सुनते हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक शांति प्रदान करते
हैं। विभिन्न धार्मिक अखाड़ों के भव्य जुलूस, पारंपरिक संगीत और सांस्कृतिक
कार्यक्रम इस मेले को एक अनूठा अनुभव बनाते हैं।
समाप्ति
महाकुंभ 2025 न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज और
संस्कृति की विविधता और एकता का प्रतीक भी है। इस आयोजन के माध्यम से हम अपने
धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को न केवल संरक्षित करते हैं, बल्कि अगली पीढ़ी को
भी इनसे जोड़ते हैं। महाकुंभ का यह अवसर हर व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक उन्नति और
आत्मशुद्धि का अनुपम अवसर है।