स्कंदमाता की कथा, पूजा विधि, मंत्र और वरदान | नवरात्रि के पांचवें दिन की पूजा

नवरात्रि 2024: पंचम दिन की पूजा – मां चंद्रघंटा का स्वरूप, आरती, व्रत कथा और मंत्

माँ स्कंदमाता

स्कंदमाता देवी, जो पहाड़ों पर रहकर संसारिक जीवों में नवचेतना का संचार करती हैं, नवरात्रि के पांचवें दिन पूजी जाती हैं। कहा जाता है कि उनकी कृपा से अज्ञानी भी ज्ञानी बन जाता है। वे भगवान कार्तिकेय (स्कंद कुमार) की माता हैं, इसलिए उन्हें 'स्कंदमाता' कहा जाता है। उनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में उनकी गोद में बैठे हुए हैं। देवी की चार भुजाएं हैं—दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वे स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं, जबकि नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में है, और नीचे वाली भुजा में भी कमल पुष्प धारण किया हुआ है। उनका वर्ण अत्यंत शुभ्र है, और वे कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए उन्हें 'पद्मासना' भी कहा जाता है। उनका वाहन सिंह है। स्कंदमाता विद्वानों और सेवकों को उत्पन्न करने वाली शक्ति मानी जाती हैं, जो चेतना का निर्माण करती हैं।

कहते हैं कि महाकवि कालिदास की रचनाएँ, जैसे रघुवंशम और मेघदूत, स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हो पाईं।

स्कंदमाता की पूजा का महत्व


स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को विशेष वरदान प्राप्त होते हैं, खासकर उन लोगों को जो संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं। यह देवी संतान सुख प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। स्कंदमाता की पूजा में भगवान कार्तिकेय की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

स्कंदमाता को प्रिय भोग

स्कंदमाता को केले का भोग विशेष रूप से अर्पित करना चाहिए। मां को पीली वस्तुएं अति प्रिय होती हैं, इसलिए केसरयुक्त खीर का भोग भी लगाया जा सकता है। जो भक्त पूरे भक्ति भाव से स्कंदमाता की पूजा करते हैं, उन्हें देवी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

मां स्कंदमाता का ध्यान मंत्र:

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


स्कंदमाता को प्रसन्न करने के उपाय

स्कंदमाता की कथा, पूजा विधि, मंत्र और वरदान | नवरात्रि के पांचवें दिन की पूजा

स्कंदमाता की पूजा में धनुष-बाण अर्पित करने का विशेष महत्व है। उन्हें सुहाग का सामान भी चढ़ाना चाहिए। नवरात्रि के पांचवें दिन लाल वस्त्र में सुहाग सामग्री, लाल फूल, और अक्षत अर्पित करने से महिलाओं को सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है।

स्कंदमाता की पूजा विधि:

नवरात्रि के पांचवें दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
प्रतिमा का गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
एक कलश में जल भरकर उसमें कुछ सिक्के डालें और चौकी पर रखें।
स्कंदमाता को रोली-कुमकुम का तिलक करें और नैवेद्य अर्पित करें।
मां की आरती उतारें और प्रसाद बांटें।
इस दिन सफेद वस्त्र पहनकर मां को केले का भोग लगाएं। ऐसा करने से मां निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं।


स्कंदमाता का स्वरूप

स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से उन्होंने अपने पुत्र स्कंद को गोद में पकड़ा हुआ है। नीचे वाली भुजा में कमल का फूल है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में है, और नीचे वाली भुजा में भी कमल पुष्प है। उनका वर्ण एकदम गौर है, वे कमल के आसन पर विराजमान हैं और उनका वाहन शेर है।

स्कंदमाता का कवच

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥


स्कंदमाता की पूजा विधि

नवरात्रि के पांचवें दिन सफेद रंग का प्रयोग करें। इस दिन पूजा करने से बुध ग्रह से संबंधित दोष दूर होते हैं। माता को केले का भोग अर्पित करें और चंपा के फूलों का उपयोग करें। स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय दिन का दूसरा पहर होता है। पूजा में हरे रंग की चूड़ियां चढ़ाएं, जिससे बुद्धि का विकास होता है।

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