एक दिन गोरा कहती भोले से
तर्ज - एक दिन वह भोले भंडारी
एक दिन गोरा कहती भोले से,
दिला लाओ हरि साड़ी, के सावन आ गया है
के सावन आ गया है
सारी सखियां हरा पहनती,
आज है किट्टी हमारी के सावन गया है
के सावन आ गया है
ओ मेरे भोले स्वामी, चूड़ियां भी लूंगी में तो हरि हरि
हरि ही चुनरिया लूंगी, बिंदिया भी लूंगी मैं तो हरि हरि
हरा ही बटुवा,हरा मोबाइल,
हरि ही लूंगी जूती,के सावन आ गया है
के सावन आ गया है
कहते हैं भोले गोरा, हम तो रहते हैं ऊंचे कैलाश रे
जहां कोई किटी नहीं, जिसने किया है सत्यानाश रे
मानो गोरा बात हमारी,
पहनों अपनी ही साड़ी,के सावन आ गया है
के सावन आ गया है
क्यों मुझको ब्याहकर लाये,
भोले तुम अपने इस कैलाश पर
ना कोई सखियां मेरी, ना है यहां कोई खासकर
सखियां मेरा मजाक बनाती,
कहती हमको पहाड़ी, के सावन आ गया है
के सावन आ गया है
दुखी गोरा को देखा, भोले नै ठानी मन में बात रे
पत्ते से साड़ी बनाई, बाकी भी बना दिया फुल पात से
नंदी ने जब देखी गौरा,
खाया समझ के झाड़ी, के सावन आ गया है
के सावन आ गया है
एक दिन गोरा कहती भोले से,
दिला लाओ हरि साड़ी, के सावन आ गया है
के सावन आ गया है
सारी सखियां हरा पहनती,
आज है किट्टी हमारी के सावन गया है
के सावन आ गया है
यह भी देखें : क्या मंगू मैं भोले तुमसे
श्रेणी : शिव भजन