क्या वह स्वभाव पहला सरकार अब नहीं है, kya wah swabhaw pahla sarkar ab nahi hai

क्या वह स्वभाव पहला सरकार अब नहीं है



क्या वह स्वभाव पहला सरकार अब नहीं है।
दीनों के वास्ते क्या दरबार अब नहीं है।

या तो दयालु मेरी दृढ़ दीनता नहीं है।
या दीन की तुम्हें हीं दरकार अब नहीं है।

जिससे कि सुदामा त्रयलोक पा गया था।
क्या उस उदारता में कुछ सार अब नहीं है।

पाते थे जिस हृदय का आश्रय अनाथ लाखों।
क्या वह हृदय दया का भण्डार अब नहीं है।

दौड़े थे द्वारिका से जिस पर अधीर होकर।
उस अश्रु ‘बिन्दु’ से भी क्या प्यार अब नहीं है।



श्रेणी : कृष्ण भजन

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Harshit Jain

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