दुर्गा अमृतवाणी भाग ४ हिंदी लिरिक्स Durga Amritwani Part 4 Hindi Lyrics

दुर्गा अमृतवाणी भाग ४



विधि- पूर्वक ही जोत जलाकर
माँ-चरणन में ध्यान लगाकर
जो जन, मन से पूजा करेंगे
जीवन-सिन्धु सहज तरेंगे

कन्या रूप में जब दे दर्शन
श्रद्धा - सुमन कर दीजो अर्पण
सर्वशक्ति वो आदिकौमारी
जाइये चरणन पे बलिहारी

त्रिपुर रूपिणी ज्ञान महिमा
भगवती वो वरदान महिमा
चंड -मुंड नाशक दिव्या-स्वरूपा
त्रिशुलधारिणी शंकर रूपा

करे कामाक्षी कामना पूरी
देती सदा माँ सबरस पूरी
चंडिका देवी का करो अर्चन
साफ़ रहेगा मन का दर्पण

सर्व भूतमयी सर्वव्यापक
माँ की दया के देव याचक
स्वर्णमयी है जिसकी आभा
करती नहीं है कोई दिखावा

कही वो रोहिणी कही सुभद्रा
दूर कर्त अज्ञान की निंद्रा
छल कपट अभिमान की दमिनी
नरप सौ भाग्य हर्ष की जननी

आश्रय दाति माँ जगदम्बे
खप्पर वाली महाबली अम्बे
मुंडन की जब पहने माला
दानव -दल पर बरसे ज्वाला

जो जन उसकी महिमा गाते
दुर्गम काज सुगम हो जाते
जै विध्या अपराजिता माई
जिसकी तपस्या महाफलदाई

चेतना बुद्धि श्रधा माँ है
दया शान्ति लज्जा माँ है
साधन सिद्धि वर है माँ का
जहा बुद्धि वो घर है माँ का

सप्तशती में दुर्गा दर्शन
शतचंडी है उसका चिन्तन
पूजा ये सर्वार्थ- साधक
भवसिंधु की प्यारी नावक

देवी-कुण्ड के अमृत से, तन मन निर्मल होय
पावन ममता के रस में, पाप जन्म के धोय

अष्टभुजा जग मंगल करणी
योगमाया माँ धीरज धरनी
जब कोई इसकी स्तुति करता
कागा मन हंस बनता

महिष-मर्दिनी नाम है न्यारा
देवों को जिसने दिया सहारा
रक्तबीज को मारा जिसने
मधु-कैटभ को मारा जिसने

धूम्रलोचन का वध कीन्हा
अभय-दान देवन को दीन्हा
जग में कहाँ विश्राम इसको
बार-बार प्रणाम है इसको

यज्ञ हवन कर जो बुलाते
भ्रामरी माँ की शरण में जाते
उनकी रखती दुर्गा लाज
बन जाते है बिगड़े काज

सुख पदार्थ उनको है मिलते
पांचो चोर ना उनको छलते
शुद्ध भाव से गुण गाते
चक्रवर्ती है वो कहलाते

दुर्गा है हर जन की माता
कर्महीन निर्धन की माता
इसके लिए कोई गैर नहीं है
इसे किसी से बैर नहीं है

रक्षक सदा भलाई की मैया
शत्रु सिर्फ बुराई की मैया
अनहद ये स्नेहा का सागर
कोई नहीं है इसके बराबर

दधिमति भी नाम है इसका
पतित-पावन धाम है इसका
तारा माँ जब कला दिखाती
भाग्य के तारे है चमकाती

कौशिकी देवी पूजते रहिये
हर संकट से जूझते रहिये
नैया पार लगाएगी माता
भय हरने को आएगी माता

अम्बिका नाम धराने वाली
सूखे वृक्ष सलाने वाली
पारस मणियाँ जिसकी माला
दया की देवी माँ कृपाला

मोक्षदायिनी के द्वारे , भक्त खड़े कर जोड़
यमदूतो के जाल को घडी में दे जो तोड़

भैरवी देवी का करो वंदन
ग्वालबाल से खिलेगा आँगन
झोलियाँ खाली ये भर देती
शक्ति भक्ति का वर देती

विमला मैया ना विसराओ
भावना का प्रसाद चढाओ
माटी को कर देती चंदन
दाती माँ ये असुर निकंदन

तोड़ेगी जंजाल ये सारे
सुख देती तत्काल ये सारे
पग-पंकज की धुलि पा लो
माथे उसका तिलक लगा लो

हर एक बाधा टल जाएगी
भय की डायन जल जाएगी
भक्तों से ये दूर नहीं है
दाती है मजबूर नहीं है

उग्र रूप माँ उग्र तारा
जिसकी रचना यह जग सारा
अपनी शक्ति जब दिखलाती
उंगली पर संसार नचाती

जल थल नील गगन की मालिक
अग्नि और पवन की मालिक
दशों दिशाओं में यह रहती
सभी कलाओं में यह रहती

इसके रंग में इश्वर रंगा
ये ही है आकाश की गंगा
इन्द्रधनुष है माया इसकी
नजर ना आती काया इसकी

जड़ भी ये ही चेतन ये ही
साधक ये ही साधन ये ही
ये महादेवी ये महामाया
किसी ने इसका पार ना पाया

जड़ भी ये ही चेतन ये ही
साधक ये ही साधन ये ही
ये महादेवी ये महामाया
किसी ने इसका पार ना पाया

ये है अर्पणा ये श्री सुन्दरी
चन्द्रभागा ये है सावित्री
नारायणी का रूप यही है
नंदिनी माँ का स्वरूप यही है

जप लो इसके नाम की माला
कृपा करेगी ये कृपाला
ध्यान में जब तुम खो जाओगे
माँ के प्यारे हो जाओगे

इसका साधक कांटो पे फुल समझ कर सोए
दुःख भी हंस के झेलता, कभी ना विचलित होए

सुख-सरिता देवी सर्वानी
मंगल-चण्डी शिव शिवानी
आस का दीप जलाने वाली
प्रेम सुधा बरसाने वाली

अम्बा देवी की करो पूजा
ऐसा मंदिर और ना दूजा
मनमोहिनी मूरत माँ की
दिव्या ज्योति है सूरत माँ की

ललिता ललित-कला की मालक
विकलांग और लाचार की पालक
अमृत वर्षा जहां भी करती
रत्नों से भंडार है भरते

ममता की माँ मीठी लोरी
थामे बैठी जग की डोरी
दुश्मन सब और गुनी ज्ञानी
सुनते माँ की अमृतवाणी

सर्व समर्थ सर्वज्ञ भवानी
पार्वते ही माँ कल्याणी
जै दुर्गे जै नर्मदा माता
हर ही घर गुण तेरा गाता

ये ही उमा मिथिलेश्वरी है
भयहरिणी भक्तेश्वरी है
सेवक झुकते द्वार पे इसके
दौलत दे उपकार ये इसके

माला धारी ये मृगवाही
सरस्वती माँ ये वाराही
अजर अमर है ये अनंता
सकल विश्व की इसको चिंता

कन्याकुमारी धाम निराला
धन पदार्थ देने वाला
देती ये संतान किसी को
मिल जाते वरदान किसी को

जो श्रद्धा विश्वास से आता
कोई क्लेश ना उसे सताता
जहाँ ये वर्षा सुख की करती
वहां पे सिद्धिय पानीभरती

विधि विधाता दास है इसके
करुणा का धन पाते इससे
यह जो मानव हँसता रोता
माँ की इच्छा से ही होता

श्रद्धा दीप जलाए के, जो भी करे अरदास
उसकी माँ के द्वार पे, पूर्ण हो सब आस

कोई कहे इसे महाबली माता
जो भी सुमिरे वो फल पाता
निर्बल को बल यही से मिलता
घडियों में ही भाग्य बदलता

अच्छरू माँ के गुण जो गावे
पूजा न उसकी निष्फल जावे
अच्छरू सब कुछ अच्छा करती
चिंता संकट भय वो हरती

करुणा का यहाँ अमृत बहता
मानव देख चकित है रहता
क्या क्या पावन नाम है माँ के
मुक्तिदायक धाम है माँ के

कही पे माँ जागेश्वरी है
करुणामयी करुणेश्वरी है
जो जन इसके भजन में जागे
उसके घर दर्द है भागे

नाम कही है अरासुर अम्बा
पापनाशिनी माँ जगदम्बा
की जो यहाँ अराधना मन से
झोली भरेगी सबकी धन से

भुत पिशाच का डर न रहेगा
सुख का झरना सदा बहेगा
हर शत्रु पर विजय मिलेगी
दुःख की काली रात टलेगी

कनकावती करेरी माई
संत जनों की सदा सहाई
सच्चे दिल से करे जो पूजन
पाये खुदा से मुक्ति दुर्जन

हर सिद्धि का जाप जो करता
किसी बला से वो नहीं डरता
चिंतन में जब मन खो जाता
हर मनोरथ सिद्ध हो जाता

कही है माँ का नाम 'खनारी '
शान्ति मन को देती न्यारी
इच्छापूर्ण करती पल में
शहद घुला है यहाँ के जल में

सबको यहाँ सहारा मिलता
रोगों से छुटकारा मिलता
भला जिसने करते रहना
ऐसी माँ का क्या है कहना

क्षीरजा माँ अम्बिके, दुःख हरन सुखधाम
जन्म जन्म के बिगड़े हुए, यहाँ पे सिद्ध काम

झंडे वाली माँ सुखदाती
कांटो को भी फुल बनाती
यहाँ भिखारी भी जो आता
दानवीर वो है बन जाता

बांझो को यहाँ बालक मिलते
इसकी दया से लंगड़े चलते
श्रद्धा भाव प्यार की भूखी
ममता नदिया , कभी न सुखी

यहाँ कभी अभिमान ना करना
कंजको का अपमान ना करना
घट-घट की ये जाननहारी
इसको सेवत दुनिया सारी

भयहरिणी भंडारिका देवी
इसको चाहा देवों ने भी
चरण -शरण में जो भी आये
वो कंकड़ हीरा बन जाए

बुरे ग्रह का दोष मिटाती
अच्छे दिनों की आस जगाती
कैसा पल दे ये महामाता
हो जाती है दूर निराशा

उन्निती के ये शिखर चढ़ावे
रंको को ये राजा बनावे
ममता इसकी है वरदानी
भूल के भी ना भूलो प्राणी

कही पे कुंती बन के बिराजे
चारो और ही डंका बाजे
सपने में भी जो नहीं सोचा
यहा पे वो कुछ मिलते देखा

कहता कोई समुंद्री माता
कृपा समुंद्र का रस है पाता
दागी चोले यहाँ पर धुलते
बंद नसीबों के दर खुलते

दया समुंद्र की लहराए
बिगड़ी कईयों की बन जाए
लहरें समुंद्र में है जितनी
करुणा की है नेहमत उतनी


जितने ये उपकार है करती है करती
हो नहीं सकती किसी से गिनती
जिसने डोर लगन की बाँधी
जग में उत्तम पाये उपाधि

सर्व मंगल जगजननी , मंगल करे अपार
सबकी मंगल - कामना , करता इस का द्वार

भादवा मैया है अति प्यारी
अनुग्रह करती पातकहारी
आपतियों का करे निवारण
आप कर्ता आप ही कारण

झुग्गी में वो मंदिर में वो
बाहर भी वो अंदर भी वो
वर्षा वो ही बसंत वो ही
लीला करे अनंत वो ही

दान भी वो ही दानी वो ही
प्यास भी वो ही पानी वो ही
दया भी वो दयालु वो ही
कृपा रूप कृपालु वो ही

इक वीरा माँ नाम उसी का
धर्म कर्म है काम उसी का
एक ज्योति के रूप करोड़ो
किसी रूप से मुंह ना मोड़ो

जाने वो किस रूप में आये
जाने कैसा खेल रचाए
उसकी लीला वो ही जाने
उसको सारी सृष्टि माने

जीवन मृत्यु हाथ में उसके
जादू है हर बात में उसके
वो जाने क्या कब है देना
उसने ही तो सब कुछ है देना

प्यार से मांगो याचक बनके
की जो विनय उपासक बनके
वो ही नैय्या वो ही खैव्य्या
वो रचना है वो ही रचैय्या

जिस रंग रखे उस रंग रहिये
बुरा भला ना कुछ भी कहिये
राखे मारे उसकी मर्जी
डोबे तारे उसकी मर्जी

जो भी करती अच्छा करती
काज हमेशा सच्चा करती
वो कर्मन की गति को जाने
बुरा भला वो सब पहचाने

दामन जब है उसका पकड़ा
क्या करना फिर तकदीर से झगड़ा
मालिक की हर आज्ञा मानो
उसमे सदा भला ही जानो

शांता माँ की शान्ति, मांगू बन के दास
खोटा खरा क्या सोचना, कर लिया जब विश्वास

'रेणुका माँ' पावन मंदिर
करता नमन यहाँ पर अम्बर
लाचारों की करे रखवाली
कोई सवाली जाए न खाली

ममता चुनरी की छाँव में
स्वर्ग सी सुंदर है गाँव में
बिगड़ी किस्मत बनती देखी
दुःख की रैना ढलती देखी

इस चौखट से लगे जो माथा
गर्व से ऊचा वो हो जाता
रसना में रस प्रेम का भरलो
बलि-देवी का दर्शन करलो

विष को अमृत करेगी मैय्या
दुःख संताप हरेगी मैय्या
जिन्हें संभाला वो इसे माने
मूढ़ भी बनते यहाँ सयाने

दुर्गा नाम की अमृत वाणी
नस-नस बीच बसाना प्राणी
अम्बा की अनुकम्पा होगी
वन का पंछी बनेगा योगी

पतित पावन जोत जलेगी
जीवन गाडी सहज चलेगी
रहेगा न अंधियारा घर में
वैभव होगा न्यारा घर में

भक्ति भाव की बहेगी गंगा
होगा आठ पहर सत्संग
छल और कपट न छलेगा
भक्तों का विश्वास फलेगा

पुष्प प्रेम के जाएंगे बांटे
जल जाएंगे लोभ के कांटे
जहाँ पे माँ का होय बसेरा
हर सुख वहां लगाएगा डेरा

चलोगे तुम 'निर्दोष' डगर पे
दृष्टि होती माँ के घर पे
पढ़े सुने जो अमृतवाणी
उसकी रक्षक आप भवानी

अमृत में जो खो जाएगा
वो भी अमृत हो जायेगा
अमृत, अमृत में जब मिलता
अमृत-मयी है जीवन बनता

दुर्गा अमृत वाणी के अमृत भीगे बोल
अंत:करण में तू प्राणी इस अमृत को घोल



श्रेणी : दुर्गा भजन



DURGA AMRITWANI in Parts, Part 4 by ANURADHA PAUDWAL I AUDIO SONG ART TRACK

दुर्गा अमृतवाणी भाग ४ हिंदी लिरिक्स Durga Amritwani Part 4 Hindi Lyrics, Durga Bhajan, by Singer: Anuradha Paudwal Ji


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