बद्रीनाथ धाम, भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। यह हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ है और हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है, भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर चार धामों में से एक है और भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का प्रतीक है।
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट की खुलने और बंद होने की तिथि बसंत पंचमी को पंचाग गणना के बाद निर्धारित की जाती है। आमतौर पर, मंदिर के द्वार अक्टूबर या नवंबर (विजयदशमी को तारीख निर्धारित की जाती है) के आसपास बंद हो जाते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक नियमित रूप से होता है। यहां पर भक्तजन भगवान विष्णु के दर्शन, पूजा और आरती का आनंद ले सकते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैर में मालिश कर रही थीं, और उनके ऊपर छत्तीस ज्यों की गिनती कर रही थीं। इसे देखकर एक संत ज्ञानी ने नाराजगी व्यक्त की कि भगवान विष्णु स्वयं को सेवा करवा रहे हैं और अपनी पत्नी को काम करवा रहे हैं। माता लक्ष्मी को यह देखकर खेद हुआ और उन्होंने बद्री के सात वृक्षों को चुना, जिसे बाद में बद्रीनाथ कहा गया। इसके बाद से मंदिर में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण रूप की पूजा होती है।
चीनी सेना के आक्रमण के दौरान, बद्रीनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था। बाद में, आदि शंकराचार्य ने इसे पुनर्निर्माण करवाया और मूर्ति को गरुड़ गुफा में स्थापित किया। इसके बाद चंद्रवंशी गढ़वाल नरेश ने मंदिर का निर्माण करवाया और महारानी अहिल्याबाई ने इसे सुंदरता से सजाया। यहां के प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक संबंधों के कारण बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल बना हुआ है।
उत्तराखंड को भारतीय संतों, महात्माओं, देवताओं और प्रकृति का मिलन स्थान माना जाता है। इसी प्रकार, बद्रीनाथ धाम में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ अपार प्राकृतिक सौंदर्य भी है। इसे भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है और वहां के पर्यटन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।