पतंग उड़ाओ कानजी
मैं चरखी लेकर आया,
थे पतंग उड़ाओ कानजी,
थे पतंग उड़ाओ कानजी,
राधा क्यों दो दो हाथ जी,
मैं चरखी लेकर आया,
थे पतंग उड़ाओ कानजी।
नहाए धोए के छत पर आया,
ग्वाल बाल सब साथ जी,
ललिता और विशाखा सागै,
कान्हों लड़यो पेच जी,
कान्हाँ को कनको काट्यो,
वो देखे चारूं मेर जी,
मैं चरखी लेकर आया,
थे पतंग उड़ाओ कानजी।
कान्हों फेर बढ़ायो तन को,
राधा लड़यो पेच जी,
सार काट में सार गयी,
कान्हा को कन को ढेर जी,
एजी वो कटा काटा,
राधा मचायो शोर जी,
मैं चरखी लेकर आया,
थे पतंग उड़ाओ कानजी।
अब तो हार मान लो कान्हाँ,
राधा छत सूं बोली जी,
एक पेच म्हासूं और लड़ा ले,
ओ गूजर की छोरी,
अब ओज्यु कनको कटगो,
कान्हा की उलझी डोर जी,
मैं चरखी लेकर आया,
थे पतंग उड़ाओ कानजी।
आज कटायो छत पर कनको,
जग को पालन हार जी
सब का संकट काटण वाळो,
राधा स्यूं मानी हार जी
या देखी पतंग बाजी,
भाई पप्पू गोपी नाथ की
मैं चरखी लेकर आया,
थे पतंग उड़ाओ कानजी,
श्रेणी : कृष्ण भजन

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