मेरी मानो पिया उनकी दे सो सिया
मेरी मानो पिया उनकी दे दो सिया,
बस इसी में भलाई तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई तुम्हारी पिया.....
जब से हर करके लाए सिया जानकी,
हाल होने लगी ऐसे परेशान की,
मति कौन हरी, ऐसी कुमति भरी,
बस इसी में भलाई तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई तुम्हारी पिया,
मेरी मानो पिया उनकी दे दो सिया.....
सारी लंका जली और जलती रही,
मैंने लाख कहीं पर एक ना सुनी,
मति कौन हरी, ऐसी कुमति भरी,
बस इसी में भलाई तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई तुम्हारी पिया,
मेरी मानो पिया उनकी दे दो सिया.....
श्रेणी : राम भजन

यह गीत रामायण की घटना पर आधारित है, जिसमें सीता के हरण और लंका दहन की बात की गई है। इसमें रावण की पत्नी मंदोदरी अपने पति को समझाने का प्रयास कर रही है कि सीता को वापस कर देना ही सही होगा। हर पंक्ति में मंदोदरी रावण को सचेत करती है कि उसकी जिद्द ने उसे विनाश के कगार पर ला दिया है।
"मेरी मानो पिया उनकी दे दो सिया" — ये पंक्ति बताती है कि अहंकार को छोड़कर सही निर्णय लेने में ही भलाई है। मंदोदरी रावण को समझाती है कि सीता के हरण के बाद लंका का विनाश सुनिश्चित है। पूरी लंका जलने लगी, परंतु रावण के अंधे अहंकार ने उसकी बुद्धि हर ली। यह गीत सिखाता है कि नकारात्मक सोच, घमंड और अधर्म का अंत बुरा ही होता है। सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना ही सबसे बड़ी भलाई है।