ज्ञान मोहे दीजो हे काली
तेरा भगत करे अरदास, ज्ञान मोहे दीजो हे काली....
माली कै नै बाग लगायो, पर्वत हरियाली,
रे हाथ ने पुष्पन की माला, द्वार खड्या माली,
तेरा भगत करे अरदास, ज्ञान मोहे दीजो हे काली....
जरी का दुपट्टा चीर शीश पर सोहे जंगाली,
तेरै नाकन में नकबेसर सोहे कर्ण फूल बाली,
तेरा भगत करे अरदास, ज्ञान मोहे दीजो हे काली....
सवा पहर के बीच भवन में खप्पर भर वाली,
कर दुष्टन का नास भगत की करना रखवाली,
तेरा भगत करे अरदास, ज्ञान मोहे दीजो हे काली....
चाबत नगर पान होठ पर छाय रही लाली,
तनै गावे मोतीलाल कालका कलकत्ते वाली,
तेरा भगत करे अरदास, ज्ञान मोहे दीजो हे काली....
श्रेणी : दुर्गा भजन
यह गीत काली माता के प्रति भक्ति और आस्था को दर्शाता है। इसमें भक्त काली माता से ज्ञान और आशीर्वाद की प्रार्थना कर रहा है। गीत के माध्यम से यह जताया गया है कि काली माता की पूजा और भक्ति से जीवन में शांति, समृद्धि और बल का वास होता है।
गीत के बोल में भक्ति का चित्रण इस प्रकार किया गया है, जैसे एक भक्त अपने हाथों में पुष्पों की माला लेकर माता की पूजा करता है। हर शब्द और हर पंक्ति में काली माता के प्रति अटूट श्रद्धा और समर्पण की भावना झलकती है। भक्त का हृदय सच्ची श्रद्धा से भरा हुआ है और वह अपनी प्रार्थना के द्वारा काली माता से आशीर्वाद की याचना करता है।