अंगूठी मुझे सच बता दे
अंगूठी मुझे सच बता दे,
कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम....
एक दिन जनकपुरी दरबार,
मार दिए सब राजा के मान,
धनुष के तोड़ने वाले,
कहां पे तो छोडे लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....
एक दिन गंगा तट के तीर,
केवट से मिल रहे दोनों वीर,
नाव के खेवन हारे,
कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....
एक दिन पंचवटी दर आन,
काट दिए सूपनखा के कान,
नाक के कार्टन हारे,
कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....
एक दिन पंपापुर में जाए,
मार दिया है बाली के बाढ़,
बाण के मारन हारे,
कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....
अंगूठी देख सिया बेचैन,
धड़क रहे दोनों नैनन से नीर,
पवनसुत खड़े लखामें,
कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....
श्रेणी : राम भजन

रामकथा के अनगिनत प्रसंगों में सिया का धैर्य और राम-लक्ष्मण की अटूट निष्ठा बार-बार सामने आती है। जनकपुरी के दरबार में शिव धनुष तोड़ने वाले राम हों या गंगा तट पर केवट से मिलने वाले दोनों वीर, हर जगह राम-लक्ष्मण का साहस अनोखा है। पंचवटी में सूपनखा के कान काटने की घटना हो या पंपापुर में बाली का वध, हर कदम पर लक्ष्मण की भूमिका राम के संग स्पष्ट दिखती है। लेकिन सिया के हृदय में एक बेचैनी है – अंगूठी का सच जानने की। अंगूठी का हर प्रसंग जैसे सिया को राम और लक्ष्मण की यात्रा के गहरे रहस्यों की याद दिलाता है। पवनसुत की उपस्थिति में भी यह सवाल सिया के मन में कौंधता है: "कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम?" इस गूढ़ प्रश्न में समाया है अटूट प्रेम, विश्वास और त्याग की वह कथा, जो युगों-युगों तक अमर है।