जानिये श्री खाटू श्याम बाबा का पूरा पौराणिक इतिहास और महत्ता

जानिये श्री खाटू श्याम बाबा का पूरा पौराणिक इतिहास और महत्ता

जानिये श्री खाटू श्याम बाबा का पूरा पौराणिक इतिहास और महत्ता

1. महाभारत में लाक्षागृह षडयंत्र के बाद पांडवों की मुलाकात वन में हिडिम्बा नामक राक्षसी से हुई थी। भीम का रूप देखकर हिडिम्बा उस पर मोहित हो गई। हिडिम्बा के भाई और माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिम्बा का गन्धर्व विवाह हुआ। हिडिम्बा गर्भवती हुई तो उसने बलशाली पुत्र घटोत्कच को जन्म दिया।

2. युवा घटोत्कच का विवाह प्रागज्योतिषपुर में मुरदैत्य की बेटी कामकंटका से हुआ। कामकंटका को मोरवी भी कहा जाता है। कुछ समय बाद घटोत्कच का पुत्र हुआ। उसके शेर के समान सुंदर केश थे। इससे उसका नाम बर्बरीक रखा गया। महा-पराक्रमी बर्बरीक ने और बल की प्राप्ति के लिए देवियों की आराधना की। उसने तीन ऐसे दुर्लभ और दिव्य तीरों का वरदान पाया जो अपने दुर्गम से दुर्गम लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे।

3. देवियों की आज्ञा से बर्बरीक वहीं निवास करने लगे। तब मगध देश से विजय नामक ब्राह्मण वहां आए और सात शिवलिंगों की पूजा की। स्वप्न में ​ब्राह्मण को देवी ने कहा कि सिद्ध माता के सामने आंगन में साधना करो। बर्बरीक तुम्हारी सहायता करेंगे। तब बर्बरीक ने साधना में बाधा उत्पन्न करने वाले असुरों को यमलोक भेज दिया। इससे प्रसन्न होकर नागों के राजा वासुकि ने वर मांगने को कहा तो बर्बरीक ने युद्ध में विजयी होने का वरदान मांगा।

4. महाभारत युद्ध में भाग लेने के इरादे से बर्बरीक नीले घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर जाने लगा। तब मां ने वचन लिया जो कमजोर होगा या जो पक्ष हार रहा होगा तुम उसके पक्ष से लड़ोगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरवों की हार निश्चित है। ऐसे में यदि बर्बरीक उनकी ओर से लड़ेगा तो महाभारत युद्ध का निर्णय कुछ और हो सकता है। तब वे गरीब ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के सामने आए। अनजान बनकर उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो ? जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है।

5. श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम अपने तीन तीरों से युद्ध में क्या कर सकते हो ? बर्बरीक ने कहा कि यह दिव्य बाण हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा लेनी चाही तो बर्बरीक ने एक बाण चलाया जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया. एक पत्ता श्रीकृष्ण के पैर के नीचे था। इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया। बर्बरीक ने कहा कि आप पैर हटा लें वरना यह पैर भेद देगा। श्रीकृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे।

6. श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो मुझ गरीब को कुछ दान नहीं दोगे। बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो उन्होंने बर्बरीक से उसका शीश ही मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है। उन्होंने कहा​ कि ब्राह्मण देव आप अपना वास्तविक परिचय दें। तब श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकर कर लिया।

7. शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से महाभारत युद्ध देखने की इच्छा जताई थी। इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए एक ऊंचे पहाड़ पर ​पीपल के पेड़ स्थापित कर दिया। श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे। तुम्हारे स्मरण और दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और उन्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।

8. महाभारत के युद्ध में विजयश्री प्राप्त होने पर पांडव जीत का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। क्योंकि उन्होंने पूरा युद्ध देखा है। तब बर्बरीक के शीश ने बताया कि मुझे तो युद्ध में श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता नजर आया जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे।

हर साल होली मेला, इस बार 17 से

वैसे हर माह की एकादशी को हजारों की संख्या में भक्त मंदिर में बाबा के दर्शन को आते हैं। प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्यामजी का मेला लगता है। इस बार 17 से 26 मार्च तक श्याम बाबा का मेला लगेगा। 25 मार्च को एकादशी के दिन इस मेले में देश-विदेश से लाखों भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आएंगे। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। गरीब-अमीर सभी लोग यहां आम आदमी की तरह आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

सबकी मुरादें पूरी करते हैं बाबा

भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वे अपने सारे सुखों का श्रेय उन्हें ही देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं। लोगों का विश्वास है कि बाबा श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं और रंक को भी राजा बना सकते हैं।

देवउठनी एकादशी को जन्मोत्सव

खाटूश्याम जी का जन्मोत्सव हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 2021 में यह 14 नवम्बर को रविवार के दिन है। श्री श्याम मंदिर कमेटी के द्वारा बाबा श्याम को इत्र से स्नान करवाकर गुलाब, चंपा, चमेली सहित अनेक प्रकार के फूलों के बने गजरों से बाबा श्याम को सजाया जाता है। मावे-मिश्री का केक बाबा श्याम को चढ़ाते हैं। जन्मोत्सव में भक्त-लाखों की संख्या में श्याम बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं। अपने ईष्ट का जन्मदिन मनाने और दो दिवसीय मेले में शामिल होने के लिये श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। श्याम दरबार में फाल्गुन मेले के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा आयोजन होता है।

इस​लिए देवउठनी को मनाते हैं जन्मदिन

बर्बरीक (खाटू श्याम) के महान बलिदान से काफी प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे। वरदान देने के बाद उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफनाया गया। इसलिये उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। ऐसा लोकमत है कि एक गाय उस स्थान पर आकर प्रतिदिन अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः बहाती थी। बाद में जब उस स्थान की खुदाई हुई तो वहां पर शीश प्रकट हुआ जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तब उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया। इसीलिये हमेशा देवउठनी एकादशी को ही श्री खाटूश्याम जी का जन्मदिन मनाया जाता है।

शताब्दियों पुराना है बाबा का मूल मंदिर

ऐसा माना जाता है कि मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. मंदिर को उस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया गया और मूर्ति को गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था. मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बनी है।

आरती श्री खाटूश्यामजी की

ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥

ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

रतन जड़ित सिंहासन,
सिर पर चंवर ढुरे ।
तन केसरिया बागो,
कुण्डल श्रवण पड़े ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

गल पुष्पों की माला,
सिर पार मुकुट धरे ।
खेवत धूप अग्नि पर,
दीपक ज्योति जले ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

मोदक खीर चूरमा,
सुवरण थाल भरे ।
सेवक भोग लगावत,
सेवा नित्य करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

झांझ कटोरा और घडियावल,
शंख मृदंग घुरे ।
भक्त आरती गावे,
जय-जयकार करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

जो ध्यावे फल पावे,
सब दुःख से उबरे ।
सेवक जन निज मुख से,
श्री श्याम-श्याम उचरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

श्री श्याम बिहारी जी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
कहत भक्त-जन,
मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

जय श्री श्याम हरे,
बाबा जी श्री श्याम हरे ।
निज भक्तों के तुमने,
पूरण काज करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।

Harshit Jain

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